असम सीएम और बीजेपी के फायर ब्रांड नेता ने कहा है कि वे सरकार की आलोचना करने वाले प्रोफेसरों के खिलाफ कानून ला रहे हैं. अब हेमंता बिस्वा सरमा
के बयान ने तहलका मचा दिया है. अब असम सीएम के ताज़ा बयान को यूनिवर्सिटीज और उनके प्रोफेसरों प-र कंट्रोल करने के तौर पर देखा जा रहा है।
दरअसल 21 जनवरी को हेमंता बिस्वा ने ऐलान किया कि हम प्रोफेसरों को वेतन देते हैं, उन्हें आचार संहिता की तरह काम करना होगा। वे जब चाहें सरकार के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी नहीं कर सकते। गुवाहाटी में मीडिया को संबोधित करते हुए सीएम हिमंता ने कहा कि विश्विद्यालयों के प्रोफेसरों को सिविल सेवा नियमों के तहत लाना चाहते हैं. उन्होंने आगे कहा कि हम जल्दी ही इसको लेकर विधानसभा में एक विधेयक रखने जा रहे हैं.
अपने इस एलान को लेकर आगे चर्चा करते हुए हिमंता ने बताया कि भले ही विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) प्रोफेसरों की नियुक्ति करता है लेकिन उनका वेतन राज्य सरकार देती है. हालांकि कुछ प्रोफ़ेसर क्लास रूम के मुकाबले टीवी चैनलों पर ज्यादा दिखाई देते हैं. सरमा ने आगे कहा कि “यूजीसी उन्हें शाम को पढ़ाने का समय देती है. ताकि वो अपने छात्रों को बेहतर तरीके से पढ़ा सकें, अच्छी शिक्षा दे सकें। लेकिन छात्रों को पढ़ाने के बजाय उनमें से कई लोग सरकारों के खिलाफ राय में व्यस्त हैं. सरकार की आलोचना करने में उनका ज्यादा ध्यान है. अगर राज्य सरकार को उनका वेतन देना है तो वो उनसे अनुशासन की उम्मीद करेगी।
मुख्यमंत्री ने साफ़ कर दिया कि जब तक वो कुर्सी पर है इसकी इजाज़त नहीं देंगे। इसके साथ ही उन्होंने चेतवानी दी कि वो एक साल में इस मुद्दे को सुलझा लेंगेवो इसपर काम कर रहे हैं. उन्होंने यहन तक कह दिया कि प्रोफ़ेसर या कुलपति जो भी सरकार की आलोचना करना चाहते हैं वो अपने पद से इस्तीफ़ा दे सकते हैं. अब बीजेपी नेता के इस ऐलान के बाद सियासी गलियारों में उनकी आलोचना हो रही है. जानकारों का कहना है कि बीजेपी सरकार में अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ख़तरा बढ़ता जा रहा है. जो अब विश्वविद्यालयों तक पहुंच रहा है.