सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चल रही वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) प्रक्रिया को जारी रखने की अनुमति दे दी है। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और ज्योमाल्या बागची की पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि मतदाता सूची के सत्यापन के दौरान आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र (EPIC) और राशन कार्ड को वैध दस्तावेज माना जाएगा।
इस वोटर लिस्ट रिविजन प्रक्रिया पर अदालत में गुरुवार को लगभग तीन घंटे सुनवाई हुई। इस प्रक्रिया के खिलाफ राजद सांसद मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा समेत कुल 11 लोगों ने याचिकाएं दाखिल की हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, गोपाल शंकर नारायण और अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें पेश कीं। वहीं, चुनाव आयोग की पैरवी पूर्व अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल, राकेश द्विवेदी और मनिंदर सिंह ने की।
याचिकाकर्ताओं के तर्क
याचिकाकर्ताओं ने चुनाव आयोग की इस विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया को मनमानी और भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा कि मतदाताओं से दस्तावेज मांगने का तरीका असंवैधानिक है। उनका तर्क था कि इससे लाखों लोगों के वोटिंग अधिकार छिन सकते हैं। साथ ही उन्होंने 2003 की मतदाता सूची को आधार मानने को त्रुटिपूर्ण बताया और कहा कि इस वजह से कई योग्य मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटाए जा सकते हैं, जो की चिंता का विषय है।
कोर्ट द्वारा चुनाव आयोग से पूछे गए सवाल
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से तीन महत्वपूर्ण सवाल पूछे:
1. क्या चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन करने का अधिकार है?
2. मतदाता सूची में संशोधन के लिए कौन सी प्रक्रिया अपनाई गई है?
3. इस प्रक्रिया को पूरा करने में कितना समय लगेगा?
चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया
चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने जवाब देते हुए कहा कि समय के साथ मतदाताओं के नाम जोड़ने या हटाने के लिए मतदाता सूची का संशोधन आवश्यक है। उन्होंने कहा, “अगर चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन का अधिकार नहीं होगा, तो यह जिम्मेदारी कौन संभालेगा?” आयोग ने यह भी बताया कि विशेष पुनरीक्षण एक ज़रूरी प्रक्रिया है, जिसमें अब तक लगभग 60 प्रतिशत काम पूरा हो चुका है। साथ ही आयोग ने कहा कि आधार कार्ड, राशन कार्ड और मतदाता पहचान पत्र जैसे दस्तावेजों को वेरिफिकेशन के लिए वैध माना जाना चाहिए।
अदालत की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि चुनाव आयोग के पास मतदाता सूची में संशोधन करने का संवैधानिक अधिकार होना जरूरी है, क्योंकि यह लोकतंत्र की स्वस्थ प्रक्रिया के लिए अनिवार्य है। हालांकि, अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यह प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी, निष्पक्ष और संवैधानिक मानदंडों के अनुरूप होनी चाहिए। यदि किसी मतदाता को इस प्रक्रिया के दौरान कोई परेशानी होती है, तो उसके लिए उचित कानूनी उपाय उपलब्ध होना चाहिए। कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा कि वह मतदाता सूची अपडेट करते समय आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को वैध मानते हुए एक स्पष्ट नीति बनाए और उसका सख्ती से पालन करे।
साथ ही, कोर्ट ने इस प्रक्रिया को चुनाव से कुछ महीने पहले शुरू करने के फैसले पर सवाल उठाए और कहा कि समय और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रक्रिया से किसी भी योग्य मतदाता के अधिकारों का उल्लंघन न हो।
अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल वोटर लिस्ट के विशेष पुनरीक्षण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। हालांकि, इस प्रक्रिया की पारदर्शिता पर जांच के लिए अगली सुनवाई 28 जुलाई 2025 को निर्धारित की गई है।