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CAG रिपोर्ट में बड़ा खुलासा: बिहार सरकार ₹70 हजार करोड़ खर्च का नहीं दे पाई हिसाब, कर्ज भी 12% बढ़ा

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष आमने-सामने हैं, और दोनों एक-दूसरे पर तीखे हमले कर रहे हैं। ऐसे में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की हालिया रिपोर्ट ने विपक्ष को नीतीश सरकार पर निशाना साधने का एक और बड़ा मौका दे दिया है। CAG की ताजा रिपोर्टर में यह खुलासा हुआ है कि राज्य सरकार अब तक करीब ₹70,877 करोड़ रुपये के खर्च का हिसाब-किताब नहीं दे सकी है।बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) के इतना ज्यादा पैसा खर्च होना सिर्फ बड़ी लापरवाही नहीं है, बल्कि इससे भ्रष्टाचार और पैसे के गलत इस्तेमाल की आशंका भी पैदा होती है।

CAG की यह रिपोर्ट मॉनसुन सत्र के चौथे दिन यानी गुरुवार 24 जुलाई को विधानसभा में पेश की गयी। रिपोर्ट देखते ही विपक्ष सरकार पर हमलावर हो गया।रिपोर्ट के अनुसार, करीब 49,649 योजनाओं में खर्च की गई राशि का हिसाब अधूरा है। इनमें से कुछ योजनाएं तो 2016-17 या उससे भी पहले की हैं। सबसे ज्यादा पैसा पंचायती राज, शिक्षा, शहरी विकास, ग्रामीण विकास और कृषि विभाग में बिना उपयोगिता प्रमाणपत्र के खर्च हुआ है।

यहां जानिए सबसे अधिक गबन किस विभाग ने की है:

पंचायती राज: ₹28,154.10 करोड़

शिक्षा: ₹12,623.67 करोड़

शहरी विकास: ₹11,065.50 करोड़

ग्रामीण विकास: ₹7,800.48 करोड़

कृषि: ₹2,107.63 करोड़

गबन की आशंका
रिपोर्ट ने CAG की तरफ से चेतावनी दी गयी है कि बगैर उपयोगिता प्रमाणपत्र (UC) के यह नहीं माना जा सकता है कि इतनी बड़ी राशि का उपयोग बताए गए उद्देश्य के लिए ही हुआ है। UC के बगैर इस राशि के गबन होने का खतरा बढ़ जाता है।

बजट का भी नहीं हुआ है पूरा उपयोग
रिपोर्टर के अनुसरा वित्त वर्ष 2023-24 में ₹3.26 लाख करोड़ का बजट राज्य सरकार ने पेश किया था, लेकिन उसमें से सिर्फ ₹2.60 लाख करोड़ ही खर्च हो पाया। यानी पेश किए गए बजट का सिर्फ 79.92% इस्तेमाल किया गया है। आरोप यह भी है कि खर्च न हो पाने वाली बचत में से भी एक बड़ा हिस्सा सरकार ने वापिस नहीं किया है। कुल 65,512.05 करोड़ रुपए की बचत में से सिर्फ 23,875.55 करोड़ (36.44 प्रतिशत) ही कोषागार में वापस किए गए हैं।

राज्य सरकार पर बढ़ा कर्ज
CAG रिपोर्ट बताती है कि बिहार सरकार ने पिछले साल के मुकाबले इस साल 12.34% ज्यादा कर्ज लिया है। इसका मतलब यह है कि सरकार को अपनी योजनाओं और खर्चों को पूरा करने के लिए उधार लेना पड़ा, जो दिखाता है कि राज्य की आमदनी और खर्च में संतुलन नहीं बन पा रहा है।

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