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न्यायालय करेगा आरक्षण में ‘आय आधारित प्राथमिकता’ की जांच: SC/ST और OBC में बदलाव की याचिका पर सुनवाई को तैयार

सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम और संवेदनशील मुद्दे पर सुनवाई करने का फैसला किया है। यह मामला SC (अनुसूचित जाति), ST (अनुसूचित जनजाति) और OBC (अन्य पिछड़ा वर्ग) को मिलने वाले आरक्षण में आय के आधार पर प्राथमिकता देने से जुड़ा है। याचिका में मांग की गई है कि आरक्षण का लाभ उन्हीं लोगों को मिले जो वाकई आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े हैं, न कि उन लोगों को जो आरक्षण की मदद से अब आर्थिक रूप से संपन्न हो चुके हैं।

यह जनहित याचिका उत्तर प्रदेश के रहने वाले रमाशंकर प्रजापति और यमुना प्रसाद द्वारा दायर की गई है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वर्तमान आरक्षण नीति में जाति के आधार पर आरक्षण तो मिल रहा है, लेकिन उसके लाभ बार-बार उन्हीं परिवारों को मिलते हैं जो अब सामाजिक और आर्थिक रूप से आगे बढ़ चुके हैं। इससे उन गरीब और जरूरतमंद लोगों को मौका नहीं मिल पा रहा है जो आगे आना चाहते हैं।

क्या कहती है याचिका?
याचिका में यह भी कहा गया है कि, आरक्षण का लाभ एक सीमित वर्ग तक सिमट कर रह गया है। “मेरिट-कम-इनकम” यानी योग्यता और आय आधारित प्रणाली अपनाई जाए।

सामाजिक न्याय को सही मायनों में लागू करने के लिए आरक्षण के लाभार्थियों की आर्थिक स्थिति की समीक्षा जरूरी है।

सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए कहा है कि यह मामला संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (भेदभाव का निषेध) और 16 (नौकरी में समान अवसर) से जुड़ा है और इस पर गंभीरता से विचार किया जाएगा। कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए 10 अक्टूबर 2025 तक जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।

क्यों है यह मामला अहम?
भारत में आरक्षण का आधार अभी तक मुख्य रूप से जातिगत पिछड़ापन रहा है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यह बहस तेज हुई है कि क्या आर्थिक रूप से संपन्न लोग जो आरक्षित वर्गों से आते हैं, उन्हें बार-बार आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए?
इस याचिका के ज़रिये पहली बार SC, ST और OBC वर्गों में भी “क्रीमी लेयर” (आर्थिक रूप से संपन्न तबका) को चिन्हित कर, उन्हें आरक्षण से बाहर रखने की मांग की गई है।

अब आगे क्या?
यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका के पक्ष में फैसला देता है, तो यह भारत की आरक्षण नीति में एक ऐतिहासिक बदलाव हो सकता है। इससे भविष्य में आरक्षण सिर्फ जाति नहीं, बल्कि आर्थिक जरूरत के आधार पर भी मिलने की संभावना बनेगी। इससे उन वंचित तबकों को फायदा मिल सकता है जो अब तक नजरअंदाज होते आ रहे हैं।

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